To: Secretary, Home ministry, Indian government
लाला जगदलपुरी के लिये पद्मश्री की माँग
हमारा विनम्र अनुरोध है कि लाला जगदलपुरी के बस्तर क्षेत्र पर किये गये कार्यों एवं उनकी उपलब्धियों के मद्देनज़र 'पद्मश्री' प्रदान किया जाना चाहिये। 94 वर्ष की उम्र में भी यह साहित्यकार बस्तर अंचल की पहचान बने हुए हैं।
Why is this important?
बस्तर में दण्डकवन के ऋषि कहे जाने वाले लेखक/कवि लाला जगदलपुरी वैसे तो किसी पुरस्कार के मोहताज नहीं हैं। लाला जी १९३६ से लेखनरत हैं..उनका हिन्दी के साथ-साथ छत्तीसगढी तथा बस्तर की लोकभाषा हल्बी एवं भतरी में भी लेखन-प्रकाशन उपलब्ध है। लाला जगदलपुरी भले ही आज 94 वर्ष के हो गये हों किंतु उनका लेखन ही आज भी बस्तर अंचल की पहचान है।
लाला जगदलपुरी के लेखन से पूर्व बस्तर से बाहर के लोग यहाँ की संस्कृति को बहुत हीं संकुचित रूप में देखा करते थे। वे इसे एल्विन, ग्रियर्सन, ग्रिग्सन और ग्लासफर्ड के नजरिये से देखा करते थे लेकिन इन्हें पढकर बस्तर की समृद्ध संस्कृति को उसकी समग्रता में समझने-बूझने का मौका मिला। लाला जी ने घोटुल की आत्मा को समझा और उसकी सच्चाई लिखी..
लाला जगदलपुरी जगदलपुर से प्रकाशित साप्ताहिक ’अंगारा’ में सम्पादक, रायपुर से प्रकाशित ’देशबन्धु’ में सहायक सम्पादक, महासमुंद से प्रकाशित ’सेवक’ में सम्पादक और जगदलपुर से बस्तर की लोकभाषा ’हल्बी’ में प्रकाशित साप्ताहिक ’बस्तरिया’ में सम्पादक रहे। बस्तर अंचल में हाल हीं में कराये गए सर्वेक्षण में पाया गया कि इनका नाम बस्तर अंचल के ८४ प्रतिशत शिक्षित/अशिक्षित दोनों हीं प्रकार के लोग भली भांति जानते हैं।
लाला जगदलपुरी अब वयोवृद्ध हो गये हैं तथा उनके कार्य को पद्मश्री जैसा सम्मान अब तक न मिल पाना बस्तर अंचल के पिछडेपन के कारण ही हुआ है। इस अंचल की महानतम कलम को पद्मश्री दिया जाये यह हमारी विनम्र माँग हैं।
लाला जगदलपुरी के लेखन से पूर्व बस्तर से बाहर के लोग यहाँ की संस्कृति को बहुत हीं संकुचित रूप में देखा करते थे। वे इसे एल्विन, ग्रियर्सन, ग्रिग्सन और ग्लासफर्ड के नजरिये से देखा करते थे लेकिन इन्हें पढकर बस्तर की समृद्ध संस्कृति को उसकी समग्रता में समझने-बूझने का मौका मिला। लाला जी ने घोटुल की आत्मा को समझा और उसकी सच्चाई लिखी..
लाला जगदलपुरी जगदलपुर से प्रकाशित साप्ताहिक ’अंगारा’ में सम्पादक, रायपुर से प्रकाशित ’देशबन्धु’ में सहायक सम्पादक, महासमुंद से प्रकाशित ’सेवक’ में सम्पादक और जगदलपुर से बस्तर की लोकभाषा ’हल्बी’ में प्रकाशित साप्ताहिक ’बस्तरिया’ में सम्पादक रहे। बस्तर अंचल में हाल हीं में कराये गए सर्वेक्षण में पाया गया कि इनका नाम बस्तर अंचल के ८४ प्रतिशत शिक्षित/अशिक्षित दोनों हीं प्रकार के लोग भली भांति जानते हैं।
लाला जगदलपुरी अब वयोवृद्ध हो गये हैं तथा उनके कार्य को पद्मश्री जैसा सम्मान अब तक न मिल पाना बस्तर अंचल के पिछडेपन के कारण ही हुआ है। इस अंचल की महानतम कलम को पद्मश्री दिया जाये यह हमारी विनम्र माँग हैं।